तुम एक कविता हो

तुम बस एक कविता हो
जो लिखी हुई है
आसमान में
बादलों के पीछे कहीं...

हर रोज़
सूरज के साथ जगता हूँ मैं
तुम्हे पढने के के लिए,
शाम होती है
तुम्हारे ही अल्फाजों
को देखते हुए...

हर रात
चाँद एक नयी नज़्म बुनता है तुम पर,
आसमान से तारें चुन कर
सजाता है नज़्म...

सुबह होती है,
फिर से देखता हूँ
पूरी काएनात तुम्हारी
पलकों पर...
एक ही बार में!

चाँद- सूरज ने
बहुत मेहनत कर ली,
आओ, अब हम दोनों
बैठ कर बातें करें!

1 टिप्पणी: