जिल्द

एक रोज़ मुलाक़ात की थी
ख्वाब में तुमसे

अलसाई रात में
बहुत देर साथ बैठे थे हम
उसी क्लास रूम में
एक बेंच पर
जहाँ कभी मिले थे पहली दफा,
टीचर के आने तक
बात भी किया
मेरे एक चुटकुले पर
हँसी भी थी तुम

अब उस ख्वाब को
महफूस कर लिया है-
जिल्द चढ़ा दी है उस पर!

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