एक कविता खो गयी!

एक कविता थी
खो गयी-
जो मिले तो बताना!!

अजीब लगा उसके बिछड़ने का
सोचा न था कोई रिश्ता सा बन गया था उससे

रिश्ता तोड़ना मुश्किल हो रहा है,
जो मिले तो मिलाना
जो दिखे तो बताना!

(सच में एक कविता खो गयी थी| फेसबुक पर ही लिखी  था| रिफ्रेश करने में शायद खो गयी| सेव भी नहीं कर सका था| कुछ याद करके दुबारा लिखा तो "मुलाकातों का सिलसिला" कविता लिख सका!)

मुलाकातों का सिलसिला

ये क्या तरीका है मिलने का?
सलीका ये क्या है मिलने का?

चेहरे पर एक शिकन सी आ जाती है-
पुराने किसी लम्हे को याद करके
चुप हो जाते हो,
अपनी जुबां से फिसलते नादाँ लफ़्ज़ों को
पकड़ लेते हो,
जकड़ लेते हो हौले से

जो पहले मिलते थे
तो यूँ तो न मिलते थे
बेतकल्लुफ तो बातें करते थे हम 
अब जो मुलाक़ात करते हो
तो बहुत तकल्लुफ्शुदा हो गए हो
एक बड़प्पन सा आ गया है तुम्हारी बातों में
जो कमाया होगा तुमने
दुनिया के बाज़ार में-
मैं तो बाज़ार का हिस्सा न था!

वो जो अल्हड़पन था पास तुम्हारे, भूल चुके हो,
ख़ामोशी को अलग एक मतलब दे चुके हो
दुनियादारी की समझ तो होगी तुम्हे, मानता हूँ,
वो जो हमारी छोटी सी दुनिया थी, खो चुके हो

ऐसा करते हैं,
ये जो मुलाकातों का सिलसिला है
खत्म करते हैं

अब,
जब जी चाहे आ जाना मिलने मेरे ख़्वाबों में
मिलेंगे वैसे,जैसे मिलते थे नादाँ बरसातों में....

सौदा

एक सौदा करना है तुझसे,
मेरे ख्वाब!

छीन ले तू मेरी हकीकत
देदे हर रात झूठी सी,
देदे वो लम्हें
जो हर सफह लिखना चाहता हूँ!

ज़िंदगी कोई सौदागर नहीं,
तानाशाह है एक सल्तनत की
तू आजा-
ख्वाब मेरे
पैगंबर बन कर
मुझे रिहा कर दे!

सच्ची ज़िंदगी से बेहतर-
ओ झूठे ख्वाब,
ज़िंदगी पर लिहाफ रहने दे...

ये सौदा पक्का कर!

क्या-क्या खोया है, क्या-क्या पाना है

क्या-क्या खोया है, क्या-क्या पाना है
दुनिया के बाज़ार में अंदाज़ा लगाना है

उधार माँग कर मुस्कुराया था कभी 
अब ज़िंदगी भर उधार चुकाना है 

बचपन में एक अल्हड़पन था पास मेरे 
खोयी अमानत से ज़िन्दगी चलाना है 

खुदा-भगवान् कोई भी नहीं, जानता हूँ 
खुद को खोकर फिर किसको पाना है 

क्यूँ इकट्ठा करूँ कागज़-पत्थर तेरे लिए 
जब एक दिन मुझे तुझमे ही समाना है 

ऐ हवा! तू यूँ ख़ामोश ना रहा कर 
तुझे धड़कनों का साथ निभाना है 

मैं हूँ, नहीं हूँ, क्या पता- क्या खबर
झूठी है दुनिया, झूठा सारा ज़माना है

विश्वास

जो मैं ये कह दूँ कि
तुम्हारे ख्वाब सारे झूठे हैं,
तो तुम क्या कहोगे?

जो मैं ये कह दूँ कि
खेल रहा है कोई तुम्हारे विश्वास से,
तो तुम क्या करोगे?

जो मैं ये कह दूँ कि
हर लम्हा एक शैतान बैठा है
तुम्हारे आस पास
जो तुम्हे झूठे दिलासे देता रहता है,
तो क्या कर लोगे तुम?

जो मैं कभी चुनौती दे दूँ
तुम्हारे विश्वास को
तो जवाब क्या होगा तुम्हारा?

बस,
मुझे "झूठा" कह देना,
और वही करना जो तुम्हे करना है|