सलाखें


दुनिया
और दरम्यान

मेरे
हैं सलाखें।

सलाखों के
उस तरफ
मैं,
इस तरफ
दुनिया सारी।

क़ैद कौन है,
इसका फैसला
कौन करे?

18.8.13

सच और झूठ

देखो,
एक पंछी उड़ता है
और मैं लिखता हूँ
एक कविता उस पर

वो पंछी कुछ नहीं
कहता
ना सुनता
बस उड़ता है
विशाल गगन में

मैं कविता लिखता हूँ
वो कविता है
मैं झूठा हूँ
वो सच्चा है।

10.8.13

पागल आकाश

रे पागल आकाश,
रात भर छत पर मेरे क्यों सोता है तू?

तू भी आवारा
हम घुमक्करों सा लगता है
मैंने देखा है
तेरी विह्वलता को

रे आकाश
दिन भर सूरज की धूप में क्यों तपता है तू?

तेरी बातें सुनता हूँ मैं
छुप-छुप कर|

अच्छा,
ये बता कल क्या बातें कर रहा था तू बादल से?

मुझे सब पता है-
तुने साजिश की है
मेरे रूह तक को भिगो देने की अगली बारिश में|

रे आकाश,
तू सच में पागल है!