मुक्ति


देखो,
तुम में और
तुम्हारी उड़ान
के दरम्या है
एक पतंग-

उसकी डोर
बंधी है दूर कहीं
किसी गाँव के
किसी गली के
किसी चौपाल के
पास वाले कुएँ
के रस्सी से-

जब-जब
रस्सी से बंधी बाल्टी
जाती है नीचे
लाने मीठा पानी
तुम अनायास ही
एक गोता
लगाते हो
आसमान में-

तुम अनायास ही
टकराते हो
बादलों से
-और अनायास ही
सुनामी आ जाती है
अनगिनत

पतंग के
धागे को
-अगर हो सके-
काट देना कभी
और डाल देना
पतंग में
साँस अपनी

उड़ना फिर
आराम से
-मुक्त आसमान में
मुक्त इन शब्दों की तरह।

-(तुमसे छुपते-छुपाते तुम्हारे ही पास आता मैं)

20.10.2013

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