जब जाल समेटूँगा

मैं
अपना जाल समेट
चला जाऊँगा कहीं

कहाँ-
पता नहीं

पता है लेकिन
वहाँ नहीं होगी
भाग-दौड़ कोई
मैं दौड़ूंगा सिर्फ
तितलियों के पीछे

मैं कोई तिलिस्म
पैदा करूँगा
और बन जाऊँगा
चिड़िया
-बैंगनी परों वाली

मैं जाल समेटूँगा
और रख लूँगा
पास अपने
ज़रूरी सामान कुछ
-वो डायरी,
जिसमें तुम्हारा फूल है एक
-वो पल,
जिसमें हँसी हो तुम
-वो रात,
जब हम खामोश ही रहे

सुनो,
मैं जब
जाल समेट रहा होऊँगा,
तब मेरे जाल में
फँस जाना तुम।

22.6.16

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