मैं यहीं हूँ, कब से

मैं
यहीं हूँ
कब से...

एकदम यहीं
बैठा हुआ सा,
तुम्हारे साथ ही
तुम्हारे जाने के बाद भी

ठीक मेरे बगल
कुछ गर्माहट बैठी है
देखो ना,
हम कब के साथी
अब भी यहीं हैं

तुम्हारा जाना
कितना अकस्मात था
उतना ही जितना
तुम्हारा मेरे जीवन में आना

मैं चालाक था
सारे खास पल
दर्ज किये कविता में

इसलिए कि
तुम्हारे जाने के बाद भी
तुमको पढ़ सकूँ
बार बार

लेकिन देखो ना
अब भी बैठा कविता ही
लिख रहा हूँ

तुम भी पास बैठी हो ना,
इसलिए।

-8.7.17

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